सोमवार, 6 अप्रैल 2009

‘‘देश-भक्ति गीत’’ गेंदालाल शर्मा ‘निर्जन’

देखो बच्चों इस भूमि का कर्ज चुकाना है।

भारत माँ को दुनिया में, मूर्धन्य बनाना है।।

कुंठा और अभिमान से हम निश्चित ही दूर रहें।

दुख के झंझावातों को भी हों मजबूत सहें।

अपने राष्ट्र को हमने तो सर्वस्व ही माना है।

भारत माँ को दुनिया में, मूर्धन्य बनाना है।।

भारतीय संस्कारों से हम ओत-प्रोत होंगे।

देश के नागरिकों के लिए ऊर्जा का स्रोत होंगे।

हर दृष्टि से अपने को मजबूत बनाना है।

भारत माँ को दुनिया में, मूर्धन्य बनाना है।।

कायरता को जीवन में स्थान नही देंगे।

दुष्ट और शत्रु को भी सम्मान नहीं देंगे।

सबके मन में शत्रु का आतंक मिटाना है।

भारत माँ को दुनिया में, मूर्धन्य बनाना है।।

धोखे से भी यदि कोई दुश्मनी निभायेगा,

गल्ती करेगा बाप तो बेटा भी पछतायेगा।

मातृ-भूमि स्त्रीत्व दिखता, स्वभाव मर्दाना है।

भारत माँ को दुनिया में, मूर्धन्य बनाना है।।

शनिवार, 14 मार्च 2009

हास्य तथा व्यंगकार कवि गेन्दालाल शर्मा ‘निर्जन’ की कलम से-

फैसनेबिल बीमारी


कुर्सी की आड़ में, जनता की राड़ में,

खेले जो शिकार वही सच्चा खिलाड़ी है।

दिन में होय गूँगा, अरु टाँग एक टूटी होय,

रात में जो जुड़ जाये, सच्चा भिखारी है।

बिल्डिंग कई मंजिली, एक ईट दीवार होय,

घूँसा मार गिर जाये, जानो काम सरकारी है।

दिन में दवाई खायें, रात को मलाई खायें,

डाक्टर भी कहे, फैसनेबिल बीमारी है ।


दामाद

जो किसी की न सुने, घूमे आवारा बन,

उसको इस युग में आजाद कहते है।

जो शादी से पहले, एडवांस ले बयाना,

उस भयानक जीव को दामाद कहते है।