शनिवार, 14 मार्च 2009

हास्य तथा व्यंगकार कवि गेन्दालाल शर्मा ‘निर्जन’ की कलम से-

फैसनेबिल बीमारी


कुर्सी की आड़ में, जनता की राड़ में,

खेले जो शिकार वही सच्चा खिलाड़ी है।

दिन में होय गूँगा, अरु टाँग एक टूटी होय,

रात में जो जुड़ जाये, सच्चा भिखारी है।

बिल्डिंग कई मंजिली, एक ईट दीवार होय,

घूँसा मार गिर जाये, जानो काम सरकारी है।

दिन में दवाई खायें, रात को मलाई खायें,

डाक्टर भी कहे, फैसनेबिल बीमारी है ।


दामाद

जो किसी की न सुने, घूमे आवारा बन,

उसको इस युग में आजाद कहते है।

जो शादी से पहले, एडवांस ले बयाना,

उस भयानक जीव को दामाद कहते है।